* न्युयार्क – दुनिया की राजधानी


न्युयार्क का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में स्टेच्यु आफ लिबर्टी,  उंची – उंची इमारते, महंगी गाडियां, चमचमाते  शोरुम, रोशनी से जगमगाती सडके इत्यादी आ जाते हैं. हां कुछ ऐसा ही है, 85 लाख की आबादी वाला यह महानगर जो अमेरिका के  वैभव और ताकत की बानगी दिखलाता है. ऐसा लगता है कि धन की देवी लक्ष्मी की पुजा भले ही हम हिन्दुस्तानी करते हों, पर कृपा तो उन्होनें न्युयार्क पर ही बरसाई है. मेरे एक वास्तुविद मित्र नें एक बार मुझसे कहा था कि, अमेरिका की व्यापारिक राजधानी कहलाने वाले न्युयार्क की समॄद्धी का एक कारण यह भी है कि यह अमेरिका के ईशान पर कोण पर बसा है.


अमेरिका के उत्तर पुर्वी छोर पर अटलांटिक महासागर के किनारे बसा न्युयार्क, दुनिया के सबसे बडे प्राकृतिक बंदरगाहों  में से एक है.  न्युयार्क के कई नाम हैं ऐसे एम्पायर सिटी, बिग एप्प्ल, केपीटल आफ वर्ल्ड, बिग सिटी, द सिटी देट नेवर स्लिप्स, सिटी आफ फाईव बरो. न्युयार्क को पांच भागों में बांटा गया है, जिन्हें बरो कहते हैं, जैसे मैनहट्टन, ब्रोन्क्स, क्वीन्स, ब्रुकलीन, स्टेटन आईलैंड. इनमें से दो मैनहट्टन और स्टेटन तो आईलैंड पर बसे हैं, बाकी मुख्य भुमी पर स्थित है.

भारत सरकार के एक डेलीगेशन के साथ अमेरिका व कनाडा जाने के निमन्त्रण मिलने के बाद, वीजा के इन्टरव्यु के लिये मुम्बई गया. वहां मुझसे पहले लाईन में खडे अधिकांश लोगों को पासपोर्ट सहित लौटा दिया गया, तब मुझे भी भय लगने लगा कि कहीं मुझे भी बैरंग ना लौटना पडे. क्योंकि अकसर यह समाचार सुनने में आता था कि कई गणमान्य नागरिकों को सुपर पावर अमेरिका नें वीजा नहीं दिया. पर मुझे दस वर्ष का वीजा मिला, जबकी मैनें तो मात्र 14 दिन का ही मांगा था. पता चला कि भारत व अमेरिका के बीच समझौते के तहत अधिकांश लोगों को दस वर्ष का वीजा दिया जाता है.

नई दिल्ली से अमेरिकन कांटीनेंटल एयरलाईन्स की 15 घंटे की नान स्टाप फ्लाईट से सीधे न्युयार्क के नेवार्क इन्टर नेशनल एयर पोर्ट पहुंचा. वहां का समय हिन्दुस्तान से 09:30 घंटे पीछे है.


न्युयार्क शहर के नजदीक तीन बडे इंटरनेशनल एयरपोर्ट हैं, पहला “नेवार्क लिबर्टी”, दुसरा “जान एफ केनेडी”, व तीसरा “ला ग्वार्डीया”. इन तीनों एयरपोर्ट को मिलाने पर अमेरिका का सबसे बडा एयरपोर्ट सिस्टम बनता है, जहां दुनिया मे सबसे ज्यादा फ्लाईट्स का आवागमन होता है, व यात्रियों की आवाजाही के लिहाज यह दुसरे नम्बर पर है. न्युयार्क में सालाना पांच करोड से अधिक यात्री, यानी औसतन हर दिन 1.50  लाख लोग आते हैं.

अलसुबह एयरपोर्ट से टेक्सी से होटल तक पहुंचा. रिसेप्शन पर पता चला कि होटल का चेक इन टाईम दोपहर दो बजे से है, रुम तभी मिलेगा. सुबह के सात ही बज रहे थे. इतने लम्बे सफर के कारण थक चुका था. मांदा वहीं लाउंज में बैठे बैठे ही नींद के झोंके खाते हुए एक घंटा बीत गया. भुख भी लगना शुरु हो गई थी. तभी रिसेप्शन पर ड्युटी बदल गई थी. वहां एक बंदा मुझे शक्ल सुरत से हिन्दुस्तानी लगा, हिम्मत कर उसके पास गया. मेरी समस्या सुनने के बाद उसनें हिन्दी में बात करते हुए कहा कि ये गोरे लोग नियम के पक्के होते हैं, इसलिये कमरा दो बजे से पहले नहीं देंगे. फिर कुपन देते हुए कहा आप नाश्ता करके आइए, तब तक मैं आपके लिये कुछ जुगाड करता हुं. जैसे ही जुगाड शब्द सुना, मन प्रसन्न हो गया. फिर वह रेस्टोरेंट में आकर मुझे रुम की चाभी देकर चला गया, तब पता चला कि वह बंदा पाकिस्तानी है.


भरपेट नाश्ता करने के बाद तकरीबन दस घंटे तक बेसुध सोया. फोन की घंटी बजी तो पता चला कि हिन्दुस्तान से आने वाले बाकी सभी लोग पहुंच गये हैं व आपस में मिलना चाहते है. खिडकी से बाहर देखा तो घनघोर अंधेरा दिखा व बारिश हो रही थी, व बेहद ठंड थी. यहां शाम का समय था, जबकी हिन्दुस्तान में सुबह की शुरुआत हो रही थी.

हम सभी डेलिगेशन के लीडर, भारतीय अधिकारी के कमरे में मिले, आपस में परिचय हुआ. जेट लाग के कारण सभी थके हुए थे. भोजन के लिये बाहर जाने का किसी का मन नहीं हो रहा था, अतः तय किया कि जिस किसी के पास जो कुछ भी खाने का सामान हो निकाल लाये. थोडी बहुत गपशप के बाद दिमाग कह रहा था कि रात बहुत हो चुकी है, इसलिये सो जाना चाहिये, किन्तु शरीर अभी भी भारतीय समयानुसार ही काम कर रहा था. शरीर की घडी को भारतीय समय से बदलकर अमेरिकन समयानुसार ढालने में दो – तीन दिन लग गये.

हमारी होटल न्युजर्सी में थी, क्योंकि रहने के लिये यह शहर न्युयार्क के मुकाबले सस्ता है. दोनों शहर एक दुसरे से जुडे हुए हैं, व हडसन नदी दोनों शहरों का विभाजन करती हैं. हमारी होटल के ठीक सामने नदी पर बने लिंकन टनल को पार कर हम सीधे मेनहट्टन पहुंच जाते थे. आफिस के समय ट्राफिक के कारण वहां पहुंचने में बहुत समय लगता था. ट्राफिक जाम की समस्या का यह आलम है कि औसत न्युयार्क निवासी एक साल में तकरीबन 74 घंटे समय जाम मे बिताता है. इसके बाद भी हार्न सिर्फ इमरजेंसी में ही बजाया जाता है.


बस या मेट्रो सघन बस्ती में तो मिल जाती है, लेकिन सबअर्बन क्षेत्रों में जाने के लिये, टेक्सी जिसे यहां केब कहा जाता है, का उपयोग मुझे महंगा लगा. यहां हिन्दी बोलने समझने वाले वाले टेक्सी ड्रायवर आसानी से मिल जाते हैं. कई खास जगहों पर जगह सायकल रिक्षा भी दिखाई देते हैं.

अमेरिका की अपनी स्वयं की अपनी कोई संस्कृती नहीं है, वरन यह अनेको देशों की संस्कृतीयों का मिलाजुला संगम है. इस देश की खासियत है कि यह धर्म – देश – भाषा के भेदभाव से परे, किसी भी अच्छी बात को ग्रहण करने में देरी नहीं करता है. जैसे हमारे योग को इन्होनें अपना लिया. यही कारण है कि हमारे अनेकों योग गुरु यहां प्रसिद्ध हैं. यहां विदेश से आकर बसने वालों को भी अपनी प्रतिभा को निखारने का पुरा अवसर मिलता है. यही कारण है कि अनेकों अनेक हिन्दुस्तानी यहां आकर विभिन्न क्षेत्रों में शीर्ष पदों पर कार्य कर देश का नाम रोशन कर रहे हैं.

न्युयार्क में पहला मानव तकरीबन 12,000 वर्ष पुर्व आकर बसा था, जिन्हें हम नेटीव अमेरिकन  के नाम से जानते हैं. लेकिन आधुनिक न्युयार्क का इतिहास मात्र  400 वर्ष पुराना है. पहले पहल सन 1609 में हेनरी हडसन नें डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिये एशिया का रास्ता खोजते हुए, न्युयार्क में प्रवेश किया. इस द्वीप को यहां के स्थानीय नागरिक मेनहट्टा कहते थे, जिसका स्थानीय लेनाप भाषा में मतलब होता है, कई पहाडियों वाला द्वीप.

इसे स्थानीय अमेरिकन इण्डियन लोगों से आज की कीमत के मान से लगभग एक हजार डालर में खरीदा गया था. तब इस जगह का नाम वर्तमान नीदरलैंड की राजधानी की याद मे “न्यु एम्स्टर्डम” रखा गया. लेकिन सन 1664 में इसे ड्युक आफ यार्क को उनके 18 वें जन्मदिन पर उनके पिताजी नें तोहफे मे दिया, इसलिये इसका नाम बदलकर न्युयार्क रख दिया गया.

सन 1780 में सिर्फ एक साल के लिये यह शहर अमेरिका की राजधानी बना, फिर राजधानी को यहां से फिलाडेल्फिया व उसके बाद वाशिंगटन में स्थानांतरित कर दिया गया. बीसवीं सदी की शुरुआत में ही यहां की आबादी तीस लाख हो चुकी थी.

मेनहट्टन न्युयार्क का सबसे महत्वपुर्ण भाग है, जिसमें अधिकांश व्यापरिक संस्थानो के कार्यालय होने के साथ ही सैलानीयों के किये कई आकर्षक स्थान है, जैसे स्टेच्यु आफ लिबर्टी, टाईम्स स्क्वेयर, एम्पायर स्टेट बिल्डींग, सेंट्रल पार्क, मेडिसन स्क्वेयर पार्क, संयुक्त राष्ट्र कार्यालय, अमेरिकन म्युजियम आफ नेचरल हिस्ट्री, मेडम तुसाद म्युजियम, कोलम्बिया युनिवर्सिटी, न्युयार्क स्टाक एक्स्चेंज, राकफेलर सेंटर, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर. हमारा अगला पुरा सप्ताह व्यस्त रहा पर, फिर भी हम समय निकालकर घुम फिर ही लेते.

मैनहट्टन में इमारतों की उंचाई अत्यधिक होने के कारण, कई सडकों तक तो धुप भी नहीं पहुंच पाती होगी. मुझे लगता है कि अगर मैं टोपी पहने, इन इमारतों की छत देखने की कोशिश करता तो, मुझे सिर को इतना झुकाना पडता कि मेरी टोपी ही गिर जाती.

मैनहट्टन की आबादी करीब 15 लाख है, जो काम के दिनों में लगभग दुगुनी हो जा्ती है, क्योंकि सप्ताहांत में लोग अपने घर चले जाते हैं. मेनहट्टन में रहना बहुत महंगा है, यहां एक बेडरुम वाले फ्लेट का औसत किराया 3400 डालर (लगभग दो लाख रुपये) प्रती माह होता है.

न्युयार्क में पुरे साल भर कई तरह के खेल, सांस्कृतीक, राजनैतिक, थियेटर, सम्मेलन इत्यादी कार्यक्रम होते रहते हैं. जिनमें भाग लेने व देखने के लिये दुनिया भर से लोग आते हैं. इसके अलावा यहां सैकडों म्युजियम व सांस्कृतीक प्रतिष्ठान हैं. इन सबको देख पाना एक सैलानी के लिये सम्भव नहीं हैं. हमनें 116 डालर का सिटी पास खरीदा, जिससे यहां के 6 प्रसिद्ध स्थानों में प्रवेश मिलता है, जैसे एम्पायर स्टेट बिल्डींग, अमेरिकन म्युजियम आफ नेचुरल हिस्ट्री, मेट्रोपोलिटन म्युजियम आफ आर्ट, टाप आफ आब्सर्वेशन डेक, स्टेच्यु आफ लिबर्टी व एल्लीस आईलैंड, 9 /11 मेमोरियल एंड म्युजियम.


स्टेच्यु आफ लिबर्टी को देखना, एक अद्भुत अनुभव था. क्योंकि यह न्युयार्क ही नहीं वरन अमेरिका का प्रतीक चिन्ह बन चुकी है. 46 मीटर उंची विश्व प्रसिद्ध इस मुर्ती की स्टेंड सहित जमीन से उंचाई 93 मीटर है. यह स्वतन्त्रता की रोमन देवी लिबर्टा है, जिनके एक हाथ में टार्च व दुसरे हाथ में न्याय की किताब है, जिस पर अमेरिका के इंगलैंड से स्वतन्त्र होने का दिवस 4 जुलाई 1776 लिखा हुआ है. इसके पैरों में एक टुटी हुई जंजीर पडी हुई है, जो आजादी की प्रतीक है, जो पिछले 130 वर्षों से अप्रवासीयों का अमेरिका में स्वागत कर रही है. यह युनेस्को की हेरीटेज साईट है.

तांबे की बनी इस मुर्ती को डिजाईन करने वाले कलाकार का नाम है, फ्रेडरीक आगस्त बार्थोल्डी, जबकि इसे बनाने वाले इन्जिनियर थे, फ्रांस के गुस्ताव आईफेल, जिन्होनें पेरिस का महशुर आईफेल टावर को बनाया था. स्टेच्यु आफ लिबर्टी अमेरिका को फ्रांस की तरफ से सन 1886 में दिया गया एक उपहार था, इसके निर्माण में लगने वाले खर्च के लिये दोनों देशों के नागरिकों नें चंदा दिया था. इसका निर्माण फ्रांस में किया गया था, जिसे टुकडों में अमेरिका लाकर जोडा गया. 204 टन वजनी इस मुर्ती को बनाने में 27 टन ताम्बा व 113 टन लोहा लगा है. ताम्बे का उपयोग होने के कारण, इसका आक्सीकरण होने से इसका रंग हरा हो गया.

मेनहट्टन के नजदीक ही हार्बर क्षेत्र में लिबर्टी आईलैंड पर खडी इस मुर्ती को बनाने में 11 वर्ष लगे, व सन 1875 में जनता के लिये खोल दी गई. हर साल इसे देखने साढे तीन करोड से ज्यादा दर्शक आते हैं. स्टेच्यु आफ लिबर्टी पानी के जिस हिस्से पर खडी है, वह न्युयार्क नहीं वरन न्युजर्सी का भाग है.

हम स्टेच्यु तक बेटरी पार्क जो हडसन नदी के मुहाने पर है से स्टीमर से पहुंचे. यहां पहुंचने का एक और रास्ता न्युजर्सी के लिबर्टी स्टेट पार्क से भी है. हम मुर्ती के उपर ताज तक नहीं जा पाये, कारण संकरी घुमावदार सिढीयों से चढकर उपर जाना होता है. अंदर जगह कम होने के कारण एक बार में बहुत कम लोग ही उपर जा पाते हैं. उपर जाने हेतु अग्रिम आरक्षण कराना होता है.

मेनहट्टन को ब्रुकलीन से जोडने वाला ब्रुकलीन ब्रीज, पहला स्टील वायर सस्पेंशन वाला ब्रीज है. जिसके फोटो अकसर दिखलाई देते हैं.

मेनहट्टन के ब्राडवे व सेवन्थ एवेन्यु के जंक्शन पर स्थित टाइम्स स्क्वेयर, न्युयार्क या अमेरिका ही नहीं वरन दुनिया का सबसे महत्वपुर्ण चौक है. इसे कभी दुनिया का सेंटर कहा जाता था. कभी इसका नाम लांग एकड स्क्वेयर था, लेकिन 1904 में न्युयार्क टाईम्स समाचार पत्र नें यहां टाईम्स बिल्डिंग बनाई, जिसके बाद इसे टाइम्स स्क्वेयर कहा जाने लगा. हर 31 दिसम्बर की रात को नये साल का स्वागत करने के लिये यहां दस लाख से ज्यादा लोगों की भीड एकत्रीत होती है. टाइम्स स्क्वेयर से होकर प्रतिदिन 3.30 लाख से ज्यादा आदमी गुजरते हैं.

मैडम तुसाद का मोम का म्युजियम, रिप्ले का “बिलीव इट आर नाट” के अलावा अनेकों प्रसिद्ध कम्पनियों के शोरुम्स, आफिस, भवन, विशालकाय हार्डिंग्स इत्यादी यही पर स्थित हैं. यहां कई महत्वपुर्ण थिएटर्स भी हैं, जो बरसो से नाटकों का मंचन कर रहे हैं.  फैंटम ब्राड्वे के इतिहास में सबसे अधिक चलने वाला ओपेरा है, जो 9100 से अधिक बार प्रदर्शित हो चुका है.

शहर में भले ही अनगिनत बहुमंजिला इमारते खडी हों, फिर भी यहां बहुत जमीन खाली पडी है. समुचे न्युयार्क शहर में 28,000 एकड से अधिक जमीन पर अनेकों बगीचे बने हुए हैं. यहां का सबसे बडा सेंट्रल पार्क है, जो मेनहट्टन के मध्य स्थित है. यह 843 एकड पर बना हुआ है, जो युरोप के मोनाको देश से भी बडा है. इसके अलावा शहर में तकरीबन 22 किलोंमीटर से अधिक लम्बा समुद्री तट भी है.

सेंट्रल पार्क शहरी क्षेत्रों में स्थित, दुनिया के सबसे बडे बगीचों में से एक है. जिसे देखने हर साल 4 करोड से भी ज्यादा दर्शक आते हैं. यह दुनिया की सबसे ज्यादा फिल्माई जाने वाली जगहों में से एक है. यहां चिडीयाघर, तालाब, योगा सेंटर के अलावा मनोरंजन के अनेकों साधन हैं. यहां संगीत के अनेकों कार्यक्रम होते ही रहते हैं. पार्क की प्रवेश दर 18 डालर है, जिसमें झू व 4D थियेटर में प्रवेश भी सम्मिलित है.


यहां आने वाली भीड का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सेंट्रल पार्क के आसपास एक हाट डाग के स्टेंड (ठेला) को खडा करने का सालाना शुल्क तीन लाख डालर (लगभग दो करोड रुपये) तक होता है. सेंट्रल पार्क की जमीन की कीमत, आज के मान से अमेरिका के समुचे अलास्का राज्य के बराबर होगी.

मेनहट्टन के 5th एवेन्यु में स्थित इस 102 मंजिला एम्पायर स्टेट बिल्डींग की उंचाई एन्टीना सहित 443 मीटर है. सन 1931 से लेकर 1972 तक यह दुनिया का सबसे उंचा भवन था. आज दुनिया में इससे भी उंची कई इमारते बन चुकी हैं, परन्तु इसका सन्मान आज भी बरकरार है.

इसमें प्रवेश महंगा है. इसके 86 वें मंजिल पर बने मेन डेक पर बनी आबजेर्वटरी तक जाने का टिकट 32 डालर है, व सबसे उंची 102 वीं मंजिल तक की कीमत 52 डालर है. इसकी छत पर खडे होकर न्युयार्क को देखना एक अद्वितीय अनुभव है. यदि आसमान साफ हो, तो एम्पायर स्टेट बिल्डींग से लगभग 125 किलोंमीटर दुरी तक साफ नजर आता है, जिससे न्युयार्क, कनेक्टीकट्, मेसाचुसेट्स, न्यु जर्सी व पेनसिल्वेनिया राज्यों के भूभाग दिखलाई दे सकते हैं. पर बादलों के कारण हम बहुत अधिक दुर तक नहीं देख पाये.

इसके अलावा भी न्युयार्क कई उंची इमारते हैं, जैसे वूलवर्थ बिल्डींग, न्युयार्क लाईफ बिल्डींग, मेट्रोपोलिटन लाईफ इन्स्युरेन्स टावर इत्यादी.

सन 1899 में बना, 265 एकड पर फैला ब्रोक्स झू दुनिया के बेहतरीन चिडियाघरों में से एक है, जिसमें कई विलुप्त होने वाली प्रजातियां हैं. हिन्दुस्तान में बंद पिंजरे में जानवरों को देखने के मुकाबले में इस आधुनिक झू में, खुले में जानवरों को देखना एक यादगार अनुभव है. इसका प्रवेश शुल्क 34 डालर है.
न्युयार्क के कई चिडियाघरों व मछलीघर का समुह है, जिसमें सम्मिलित हैं, ब्रोंक्स झू, सेंट्रल पार्क झू, प्रास्पेक्ट पार्क झू, क्वीन्स झू, व न्युयार्क एक्वेरियम. इन सभी को देखने के लिये रियायती दर पर एक टिकट मिलता है.

इसे कई हिस्सों में बांटा गया है, जिसमें थीम के अनुसार उस पेवेलियन को सजाया गया है. उदाहरण के तौर पर, जैसे हम अफ्रिकन पेवेलियन में गये तो ऐसा लगा, जैसे हम अफ्रिका महाद्वीप में ही पहुंच चुके हैं. यहां के प्रमुख पेवेलियन हैं, कांगो गोरिल्ला फारेस्ट, जंगल वर्ल्ड, वाईल्ड एशिया मोनोरेल, मेडागास्कर, टाईगर माउंटेन, अफ्रिका प्लेन्स, वर्ल्ड आफ बर्डस, वर्ल्ड आफ रेप्टाईल्स, झू सेंटर. इसके अलावा कई मौसमी प्रदर्शनियां भी लाती हैं जैसे बटरफ्लाय वर्ल्ड इत्यादी.

यहीं मेनहट्टन में दुनिया का सबसे पहला कमोडिटी मार्केट खुला जिसे न्युयार्क काटन एक्स्चेंज कहा जाता है. इसी प्रकार न्युयार्क स्टाक एक्स्चेंज भी मेनहट्टन की वाल स्ट्रीट पर है, जो दुनिया का सबसे बडा शेयर मार्केट है. यहीं से मात्र आधे किलोमीटर दुरी पर स्थित है, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर. यहां से लगभग 6 किमी दुरी पर ईस्ट रिवर के किनारे खडा है, संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय, जिसमें स्थायी सीट के लिये प्रयासरत है हमारा हिन्दुस्तान.

इस बार तो मैनें न्ययार्क भ्रमण के लिये आवागमन के विभिन्न साधनों का उपयोग किया, किन्तु अगली बार निश्चित रुप से हाप आन आप आफ बसों का उपयोग ही करुंगा, जो सैलानीयों के लिहाज से ही बनाई गई हैं. इनके एक दिन से लेकर चार दिन के पास उपलब्ध है, जिनमें अनगिनत बार आ - जा सकते हैं.

न्युयार्क अमेरिका का सबसे सघन आबादी वाला शहर है, जिसकी आबादी देश के 39 अन्य राज्यों की जनसंख्या से भी अधिक है. न्युयार्क मेट्रो सिटी की आबादी 1.20 करोड है. इसमें 44% गोरे, 25% काले अफ्रीकन, 28% स्पेनिश व 12% एशियन मुल के  हैं. ऐसा नहीं है कि अमेरिका में रहने वाला हर आदमी अमीर है. न्युयार्क की जनसंख्या का एक तिहाई भाग गरीबी रेखा के नीचे रहता हैं. जिनमें से पचास हजार से अधिक लोगों के पास रहने के लिये तो घर भी नहीं है.

यहां आप्रवासीयों की भरमार है, यहां दुनिया कि हर देश – जाती – रंग का मानव दिख जाता है. यहां रहने वाले 37% लोगों का जन्म किसी दुसरे देश में हुआ है. यहां के चायना टाउन इलाके की आबादी एशिया के बाहर किसी शहर में रहने वाले चीनी लोगों की आबादी से अधिक है. इसी प्रकार न्युयार्क में यहुदीयों की जनसंख्या भी इजरायल के बाद किसी भी देश में सबसे ज्यादा है. वारसा के बाद यहां पोलीश लोगों की आबादी (पोलेंड के निवासी) सबसे ज्यादा हैं.

इसी प्रकार क्वीन्स बरो में जेकसन हाईट्स को लिटल इण्डिया के नाम से भी पुकारा जाता है, क्योंकि यहां हिन्दुस्तानी, पाकिस्तानी, बंगलादेशी बहुतायत में रहते हैं. इसी प्रकार मेनहट्टन के करी हिल में भी कई हिन्दुस्तानी दुकाने हैं. सुबह होटल से हम भरपेट नाश्ता करके निकलते, व दिन में तो हम अपनी सुविधानुसार कहीं भी खा लेते किन्तु रात को न्युजर्सी के एडीसन इलाके में जहां भारतीयों की दुकानें बहुतायत में हैं, जाकर ही भरपेट हिन्दुस्तानी भोजन का आनंद लेते थे.

न्युयार्क शहर में दुनिया भर के लोगों के रहने के कारण सौ से भी अधिक देशों के चुनिन्दा व्यंजन उपलब्ध हैं. रेस्टोरेंट पत्रिका के मुताबिक दुनिया से सबसे अच्छे 100 रेस्टोरेंटस में से 9 न्युयार्क में हैं. इनमें से कई तो बह्त महंगे है, जिनमें एक वक्त का खाना 400 डालर (25,000 रुपये) तक हो सकता है.

इनके अलावा यहां हजारों मोबाईल कार्ट (ठेलागाडी) हैं, जिनमें सस्ता व स्वादिष्ट भोजन बिकता है. शहर के कई हिस्सों में नागरिकों के बसाहट के अनुसार भी खाना मिलता है, जैसे कोरिया टाउन में कोरियन, चायना टाउन में चायनिज, लिटल इटली में इटेलियन खाना.

अनुभवी शेफ मानते हैं कि न्युयार्क पिज्जा, इटली से भी अच्छा है. शहर के पानी के कारण पिज्जा का क्रस्ट अच्छा बनता है. पुरे शहर में 1,600 से ज्यादा पिज्जा रेस्टोरेंट होंगे. यहां प्रसिद्ध स्ट्रीट फुड जैसे हाट डाग, प्रेझेल्स, फलाफेल, टाकोस व इटेल्यन आईस हर जगह उपलब्ध है.

अंग्रेजी के अलावा यहां दुनिया भर की आठ सो भाषाएं बोली जाती हैं. अमेरिकन अंग्रेजी का उच्चारण हमारे यहां बोली जाने वाली ब्रिटीश अंग्रेजी से थोडा अलग है. जिसके कारण वे हिन्दुस्तानी भी जो देश में फर्राटेदार अंग्रेजी बोल लेते हैं, उन्हें भी बातचित में थोडी कठिनाई आ सकती है.

न्युयार्क के सबवे में ट्रेन पकडने के लिये आते जाते समय, लगातार चलने वाले संगीत कार्यक्रमों को देखना भी एक अच्छा अनुभव है. हालांकी इनमें भाग लेने ले लिये भी संगीतकारों को एक कठिन प्रक्रिया से गुजरना होता है, तब जाकर उन्हें वहां अपने हुनर को दिखलाने का अवसर मिलता है.

एक रिसर्च के अनुसार, डालर की चकाचौंध के बावजुद भी न्युयार्क अमेरिका का सबसे दुखी शहर है. यहां आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या, यहां होने वाली हत्याओं से ज्यादा है. यहां जितने लोग सडकों पर बेघरबार रहते हैं, उससे भी 4 गुना ज्यादा मकान खाली पडे हैं. यदि कोई बेघरबार व्यक्ती यह गारंटी ले की उसके लिये किसी दुसरे शहर में रहने के लिये घर की व्यवस्था हो गई है तो सिटी आफ न्युयार्क उसे एक तरफा हवाई जहाज का किराया दे देता है.

अमेरिका बहुत बडा देश है. इसका क्षेत्रफल भारत से लगभग तीन गुना ज्यादा है, जबकी आबादी में हम इससे चार गुना ज्यादा हैं. इसका पुर्वी छोर पर बसे न्युयार्क से पश्चिमी छोर पर बसे लास एन्जिलिस तक की दुरी 2,800 माईल (लगभग 4,500 किलोमीटर) है. यहां आम बोलचाल की भाषा में आज भी ब्रिटीश इम्पिरियल प्रणाली का उपयोग होता है, जिसमें दुरी के लिये माईल, वजन के लिये पाऊंड, तरल पदार्थ के लिये गैलन का उपयोग होता है.

पुरा देश घुमने के लिये कम से कम एक माह तो चाहिये. घुमने के लिये गर्मियों का समय ही अच्छा है. अभी तो मेरे पास अमेरिका का वीजा दस साल का है ही, उम्मीद करता हुं कि फिर से यहां आने का मौका जल्द ही मिलेगा.  





Vinod The Traveler

No comments:

Discus Shortname

Comments system

Instagram